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मिलेनियम स्कूल ने लाला लाजपत राय जी के जन्मदिवस को बड़ी खुशी से मनाया

मिलेनियम स्कूल डबवाली जहां पर हर त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है आज यहां पर एक जन्म दिवस मनाया गया यह जन्म दिवस उस शख्सियत के बारे में है जिसको देश का हर बच्चा जानता है उसके बारे में नई दृष्टि से समझाया गया , मिलेनियम स्कूल डबवाली ने लाला लाजपत राय जी के जन्मदिवस को बड़ी खुशी से मनाया मिलेनियम स्कूल के अध्यक्ष डॉ दीप्ति शर्मा जी ने लाला लाजपत राय जी के बारे में बताया उन्होंने कहा लाला लाजपत राय जी ने गुलाम भारत को आजाद करवाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के तीन प्रमुख नायकों लाल-पाल-बाल में से एक थे।
इस तिकड़ी के मशहूर लाला लाजपत राय न सिर्फ एक सच्चे देशभक्त, हिम्मती स्वतंत्रता सेनानी और एक अच्छे नेता थे बल्कि वे एक अच्छे लेखक, वकील,समाज-सुधारक और आर्य समाजी भी थे।इस मौके पर स्कूल के डायरेक्टर जसकरण सिंह जी ने बताया कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महानायक लाला लाजपत राय – Lala Lajpat Rai की छवि प्रमुख रुप से एक राष्ट्रवादी नेता के रूप में हैं। लाला लाजपत राय ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ शक्तिशाली भाषण देकर न सिर्फ ब्रिटिश शासकों के इरादों को पस्त कर दिया बल्कि उनकी देश के प्रति अटूट देशभक्ति की भावना की वजह से उन्हें ‘पंजाब केसरी’ या “पंजाब का शेर” भी कहा जाता था।गुलाम भारत को आजाद करवाने के लिए लाला लाजपत राय – Lala Lajpat Rai ने आखिरी सांस तक जमकर संघर्ष किया और वह शहीद हो गए। आज हम आपको अपने इस लेख में स्वतंत्रता संग्राम की मशहूर तिकड़ी लाल-बाल-पाल में से एक लाला लाजपत राय के जीवन के बारे में जानकारी देंगे – लाला लाजपत राय एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके अंदर हर किसी को प्रभावित करने का हुनर था और उनके अंदर देश की सेवा करने का भाव बचपन से ही था अर्थात वे एक सच्चे देशभक्त थे जिनका एक मात्र उद्देश्य था , देश की सेवा करना और इसी उद्देश्य से वह हिसार से लाहौर शिफ्ट हो गए, जहां पर पंजाब हाई कोर्ट था, यहां पर उन्होंने समाज के लिए कई काम किए।

इसके अलावा उन्होंने पूरे देश में स्वदेशी वस्तुएं अपनाने के लिए एक अभियान चलाया था। वहीं जब 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया तो उन्होंने इसका जमकर विरोध किया और इस आंदोलन में बढ़-चढकर हिस्सा लिया।
उस समय उन्होंने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ विरोध किया। इस तरह वे लगातार देश की सेवा में तत्पर रहते थे और देश के सम्मान के लिए लगातार काम करते रहते थे।
वहीं साल 1907 में उनके द्वारा लायी गयी क्रान्ति से लाहौर और रावलपिंडी में परिवर्तन की लहर दौड़ पड़ी थी, जिसकी वजह से उन्हें 1907 में गिरफ्तार कर मांडले जेल भेज दिया गया।
लाला जी ने अपने जीवन में कई संघर्षों को पार किया है। आपको बता दें कि एक समय ऐसा भी आया कि जब लाला जी के विचारों से कांग्रेस के कुछ नेता पूरी तरह असहमत दिखने लगे।
क्योंकि उस समय लाला जी को गरम दल का हिस्सा माने जाने लगा था, जो कि ब्रिटिश सरकार से लड़कर पूर्ण स्वराज लेना चाहती थी। वहीं कुछ समय तक कांग्रेस से अलग रहने के बाद साल 1912 में उन्होंने वापिस कांग्रेस को ज्वॉइन कर लिया। फिर इसके दो साल बाद वह कांग्रेस की तरफ से प्रतिनिधि बनकर इंग्लैंड चले गए। जहां उन्होंने भारत की स्थिति में सुधार के लिए अंग्रेजों से विचार-विमर्श किया।
इस दौरान उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर गरम दल की विचारधारा का सूत्रपात कर दिया था और वह जनता को यह भरोसा दिलाने में सफल हो गए थे कि अगर आजादी चाहिए तो यह सिर्फ प्रस्ताव पास करने और गिड़गिड़ाने से मिलने वाली नहीं है।
वहीं इसके बाद वह अमेरिका चले गए जहां उन्होंने स्वाधीनता प्रेमी अमेरिकावासियों के सामने भारत की स्वाधीनता का पक्ष बड़ी प्रबलता से अपने क्रांतिकारी किताबों और अपने प्रभावी भाषणों से पेश किया। उन्होंने भारतीयों पर ब्रिटिश सरकार के द्धारा किए गए अत्याचारों की भी खुलकर चर्चा की।
इस दौरान अमेरिका में उन्होंने इंडियन होम रूल लीग की स्थापना की इसके अलावा एक “यंग इंडिया” नाम का जर्नल भी प्रकाशित करना शुरू किया, जिसमें भारतीय कल्चर और देश की स्वतन्त्रता की जरूरत के बारे में लिखा जाता था और इस पेपर की वजह से पूरी दुनिया में वे मशहूर होते चले गए। आपको बता दें कि साल 1928 में ब्रिटिश सरकार द्वारा साइमन कमीशन लाए जाने के बाद उन्होंने इसका जमकर विरोध किया और कई रैलियों का आयोजन किया और भाषण दिए। दरअसल साइमन कमीशन भारत में संविधान के लिए चर्चा करने के लिए एक बनाया गया एक कमीशन था, जिसके पैनल में एक भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया गया।
वहीं लाला जी इस साइमन कमीशन का विरोध शांतिपूर्वक करना चाहते थे, उनकी यह मांग थी कि अगर कमीशन पैनल में भारतीय नहीं रह सकते तो ये कमीशन अपने देश वापस लौट जाए। लेकिन ब्रिटिश सरकार इनकी मांग मानने को तैयार नहीं हुई और इसके उलट ब्रिटिश सरकार ने लाठी चार्ज कर दिया, जिसमें लालाजी बुरी तरह से घायल हो गए और फिर उनका स्वास्थ कभी नही सुधरा।वहीं इस घटना के बाद लाला लाजपत राय जी पूरी तरह से टूट गए थे और उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता चला गया और फिर 17 नवंबर 1928 स्वराज्य का यह उपासक हमेशा के लिए सो गए। इस तरह भारत की आजादी के महान नायक लाला लाजपत राय जी का जीवन कई संघर्षों की महागाथा है।
वहीं उन्होंने अपनी जीवन में कई लड़ाईयां लड़कर देश की सेवा की है और गुलाम भारत को स्वतंत्रता दिलवाने में मद्द की है। लाला लाजपत राय की देश के लिए दी गई कुर्बानियों को हमेशा-हमेशा याद किया जाएगा।















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