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गांधी वो चरित्र है, जो कि भारतीयों की आत्मा में बसता है-डॉ दीप्ति शर्मा

डबवाली न्यूज़ - 
मिलेनियम स्कूल मंडी डबवाली में आज के दिन महात्मा गांधी जी के शहीदी दिवस पर शोक प्रकट किया गया और मोमबत्ती प्रकाश किया गया जिसमें स्कूल के प्रबंधक डॉ दीप्ति शर्मा  और जसकरण सिंह  ने बताया कि किस तरह महात्मा गांधी जी सत्य के मार्ग पर चलते रहे और हमें भी उनके दिखाए मार्ग पर चलते रहना चाहिए महात्मा गांधी जी की बताई हुई सत्य और धर्म की बातें आज भी हमारे दिलों में जिंदा है उन्होंने बताया कि मोहनदास करमचन्द गांधी केवल एक इंसान का नाम नहीं है बल्कि ये नाम है उस सिद्धांत का, जिसको मानने वाला इंसान कभी भी अपने रास्ते से भटक नहीं सकता है।
गांधी वो चरित्र है, जो कि भारतीयों की आत्मा में बसता है। ऐनक पहने और हाथों में लाठी लिए गांधी ने देश को केवल अंग्रेजों की गुलामी से आजाद नहीं कराया था, बल्कि ये साबित किया था कि अंहिसा और सच के रास्ते से ही हर लड़ाई जीती जा सकती हैं।मोहनदास करमचन्द गांधी का जन्म पश्चिमी भारत में वर्तमान गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर सन् 1869 को हुआ था। 
उनके पिता करमचन्द गांधी ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान थे। मई 1883 में गांधी जी की शादी कस्तूरबा से हुई थी।
इनके चार पुत्र हरीलाल गांधी, मणिलाल गांधी, रामदास गांधी और देवदास गांधी 1900 थे4 सितम्बर 1888 को गांधी यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में कानून की पढ़ाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गए।
इंग्लैंड और वेल्स बार एसोसिएशन में वापस बुलावे पर वे भारत लौट आये किन्तु बम्बई में वकालत करने में उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। 

बाद में एक हाई स्कूल शिक्षक के रूप में अंशकालिक नौकरी का प्रार्थना पत्र अस्वीकार कर दिये जाने पर उन्होंने जरूरतमंदो के लिये मुकदमे की अर्जियां लिखने का काम शुरू किया लेकिन वहां पर उनका मन नहीं लगा।
सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल (दक्षिण अफ्रीका) में एक वर्ष के करार पर वकालत का कार्य स्वीकार कर लिया।गांधी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। वह प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकार के तौर पर वहां गए थे। उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताए। दक्षिण अफ्रीका में उनको गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक बार ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने के कारण उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया। ये सारी घटनाएं उनके के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ बन गईं और मौजूदा सामाजिक और राजनैतिक अन्याय के प्रति जागरुकता का कारण बनीं। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए उनके मन में ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत भारतियों के सम्मान तथा स्वयं अपनी पहचान से सम्बंधित प्रश्न उठने लगे और यहीं से उनकी सोच बदली।वर्ष 1914 में गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आये। इस समय तक गांधी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। वह उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत आये थे। उसके बाद उन्होंने यहाँ के किसानों, मजदूरों और शहरी श्रमिकों को अत्यधिक भूमि कर और भेदभाव के विरुद्ध आवाज उठाने के लिये एकजुट किया।अंग्रेजी सरकार ने गांधी जी और कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को मुबंई में 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया और गांधी जी को पुणे के आंगा खां महल ले जाया गया जहाँ उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया। इसी दौरान उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी का देहांत हो गया और कुछ समय बाद गांधी जी भी मलेरिया से पीड़ित हो गए। अंग्रेज़ उन्हें इस हालत में जेल में नहीं छोड़ सकते थे इसलिए जरूरी उपचार के लिए 6 मई 1944 को उन्हें रिहा कर दिया गया। आशिंक सफलता के बावजूद भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत को संगठित कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया था की जल्द ही सत्ता भारतीयों के हाथ सौंप दी जाएगी। गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन समाप्त कर दिया और सरकार ने लगभग 1 लाख राजनैतिक कैदियों को रिहा कर दिया।30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दिल्ली के बिरला हाउस में शाम 5:17 पर हत्या कर दी गयी। गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे जब उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे ने उबके सीने में 3 गोलियां दाग दी। ऐसे माना जाता है की ‘हे राम' उनके मुख से निकले अंतिम शब्द थे। 4 जून 1944 को सुभाषंचंद्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को देश का पिता (राष्ट्रपिता) कहकर संबोधित किया था।

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