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कौन है NEET का नटवरलाल ? ........आचार्य रमेश सचदेवा

आचार्य रमेश सचदेवा 
दिन प्रतिदिन पेपर लीक के मामलों से हतोत्साहित होते जा रहे हैं विद्यार्थी, अभिभावक व शिक्षक क्योंकि नीट अब नीट नहीं ।
हाल ही में चिकित्सा जैसे पवित्र क्षेत्र में प्रवेश के लिए नीट यानी नेशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेंस टेस्ट 2024 के परिणाम को लेकर हंगामे के बाद कृपांक यानी ग्रेस मार्क्स हटा देने का निर्णय हो गया है लेकिन इस मामले का क्या यही अंत है? नहीं!

बड़ा सवाल यह है कि धांधली के धंधे का असली नटवरलाल कौन है? निश्चय ही एक नहीं, कई होंगे। क्या ये सब जेल जाएंगे या अदृश्य शक्तियां पहले की तरह ही इन गुनहगारों को भी बचा ले जाएंगी?

अपने देश में परीक्षा की धांधली का यह कोई पहला किस्सा नहीं है। आज तक घटित हुई सभी ऐसी धांधलियों को जांच की आड़ में दबा दिया गया है।

इस बार तो घटना को अंजाम भी बड़े सुलझे हुए तरीके से देकर परिणाम घोषित कर दिया गया। इस बार जो तरीका अपनाया गया, वह तरीका है ग्रेस मार्कस का। चुनिंदा सेंटरों पर नाना प्रकार के बेतुके तर्कों के आधार पर विद्यार्थियों को ग्रेस मार्क्स देकर देश के अनेकों बच्चों के साथ खिलवाड़ किया गया है और परीक्षा का नंगा नाच खेल गया है।

इस बार का कमाल देखिए कि भौतिक शास्त्र का एक प्रश्न ऐसा था जिसके चार में
से दो जवाब सही माने जा सकते थे। एक नई पुस्तक के हिसाब से और दूसरा पुरानी पुस्तक के हिसाब से। इस तरह यह तय किया गया कि जहां प्रश्नपत्र वितरण में गड़बड़ी हुई या भौतिक शास्त्र के प्रश्न में जिन्होंने दूसरा सही जवाब चुना उन्हें कृपांक दिए जाएं। ऐसे परीक्षार्थियों की संख्या 1563 थी, जिन पर व्यवस्था ने कृपा की। परीक्षा का परिणाम जब सामने आया तो परीक्षार्थी भी चौंक गए। 67 टॉपर को 720 में से पूरे 720 नंबर मिले थे। इनमें फरीदाबाद के एक ही सेंटर के 6 बच्चे शामिल थे।

कमाल की बात तो यह भी है कि प्रत्येक प्रश्न 4 नंबर का था तो परीक्षार्थियों को इसी गुणक में नंबर भी आने चाहिए थे। लेकिन कुछ को 718 और 719 नंबर भी मिले। ऐसा कैसे संभव हो सकता है? इतने सारे उदाहरण धांधली के स्पष्ट संकेत हैं इसीलिए सर्वोच्च न्यायालय ने नेशनल टेस्टिंग एजेंसी को फटकार लगाते हुए कहा भी कि परीक्षा की शुचिता प्रभावित हुई है।

दरअसल यही गंभीर सवाल है जिस पर विचार करना जरूरी है। इससे पूरा देश प्रभावित हुआ है। बच्चे तनाव में हैं, माता-पिता तनाव में हैं। नाना प्रकार की चर्चा फैलना भी समस्या की गहराई को बताता है।

लगता है इसके पीछे एक नहीं कई नटवरलाल होंगे। वहीं अभिभावक भी जिम्मेदार हैं। इन घटनाओं के पीछे मुख्य उद्देश्य किसी अच्छे व सरकारी कॉलेज में एड्मिशन लेने के लिए सीट हथियाना ही होता है, जिसके पीछे काले-धन का भी बोल-बाला किसी से छिपा नहीं है क्योंकि वही ऐसे कार्यों के लिए अनाप-शनाप पैसा लूट सकते हैं।

इन्हीं हालातों के मद्दे नजर तथा महंगी होती शिक्षा के कारण, हर साल सैकड़ों विद्यार्थी डाक्टर बनने तथा तकनीकी शिक्षा लेने के लिए रूस और टूटे हुए सोवियत संघ के छोटे-छोटे देशों में जा रहे हैं, तो कई चीन व नेपाल जा रहे हैं और कनाडा आस्ट्रेलिया जाना तो अब आम ही हो गया है। देश का अरबों-खरबों रुपया विदेशों में जा रहा है और हम एक लोकतंत्र देश के नाते इठला रहा हैं। देश का ब्रैन-ड्रैन हो रहा है। बाहर जाने वाले बच्चे देश के वर्तमान हालात को देखकर अपने देश वापिस आना ही नहीं चाहते जिससे अनेकों परिवार भी विघटित हो रहे हैं।

जैसा कि हम जानते ही हैं कि विश्व कि टॉप 100 यूनिवर्सिटीस में भारत की एक भी यूनिवर्सिटी का नाम नहीं है। देखा जाए तो दिन प्रतिदिन रोजगार के मामले में अथवा व्यवसाय के मामले में हर किसी प्राथमिकता के क्षेत्र स्वास्थ्य और शिक्षा ही बन गए हैं और गुणवता हमसे कोसों दूर होती जा रही है। वास्तव में हम अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं।

यदि समय रहते सरकारों ने शिक्षा कि और उचित ध्यान नहीं दिया और परीक्षा को पारदर्शी नहीं बनाया तो आने वाले समय में हम कवि नीरज कि कविता कि पंक्तियाँ ही गुनगुनाते रह जाएंगे कि

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से। लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से।
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे। कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।।

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