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अगर यह नेता पायलट न होता तो कश्मीर हमारा न होता
जन्मदिन विशेष:
ओडिसा का वह नेता जो साहसी पायलट था, साथ में जाबांज योद्धा. उसने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया. लव मैरिज की, बाद में ओडिशा का मुख्यमंत्री भी बना...
आज यानी 05 मार्च को बीजू पटनायक का जन्मदिन है. बीजू पटनायक केवल राजनीतिज्ञ ही नहीं, बल्कि एक जांबाज़ पायलट भी थे. उन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया. उनकी प्रेम कहानी भी गजब की थी. वो अपनी बारात खुद डकोटा विमान उड़ाकर ले गए थे. जब उनका बेटा महज हफ्ते भर का था तभी वो और उनकी पत्नी इंडोनेशिया में एक ऐसे साहसिक अभियान पर निकल गए, जिसकी कहानियां आज भी इंडोनेशिया में सुनाई जाती हैं.
साल 1947 में जब पाकिस्तानी हमलावरों ने कश्मीर पर हमला किया, तो बीजू पटनायक ने कश्मीर को बचाने में अहम रोल निभाया. बीजू पायलट थे. वो डकोटा डी सी-3 विमान उड़ाते थे.उन्होंने 27 अक्टूबर को अपने विमान से श्रीनगर की हवाई पट्टी के लिए उड़ान भरी. साथ में 1-सिख रेजिमेंट के 17 जवानों को भी ले गए. यह सुनिश्चित करने के लिए कि कहीं हवाई पट्टी पर दुश्मन का कब्ज़ा तो नहीं है, उन्होंने अपने विमान को हवाई पट्टी के बेहद नज़दीक उड़ाया. जब देखा कि रास्ता एकदम साफ है तो उन्होंने अपने विमान को वहीं उतार दिया. वहां पहुंचे भारतीय सैनिकों ने घुसपैठियों को खदेड़ दिया था.
बीजू पटनायक को एविएशन इंडस्ट्री में इतनी दिलचस्पी थी कि उन्होंने पायलट बनने के अपने सपने के लिए पढ़ाई तक छोड़ दी. ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने प्राइवेट एयरलाइंस के साथ उड़ान भरनी शुरू की, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने रॉयल इंडियन एयरफोर्स जॉइन कर ली. इसी दौरान उन्होंने कलिंग एयरलाइन की भी शुरुआत की. बिजयानंदा पटनायक को लोग प्यार से बीजू पटनायक कहते थे. बीजू पटनायक की पहचान एक स्वतंत्रता सेनानी, साहसी पायलट और बड़े राजनेता के रूप में रही है.
आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ थे और उन्होंने बीजू पटनायक को इंडोनेशिया को डचों से मुक्त कराने में मदद करने की ज़िम्मेदारी दी थी. नेहरू ने इंडोनेशियाई लड़ाकों को डचों से बचाने के लिए कहा था. नेहरू के कहने पर बीजू पटनायक पायलट के तौर पर 1948 में ओल्ड डकोटा एयरक्राफ़्ट लेकर सिंगापुर से होते हुए जकार्ता पहुंचे थे. यहां वो इंडोनेशियाई स्वतंत्रता सेनानियों को बचाने पहुंचे थे. डच सेना ने पटनायक के इंडोनेशियाई हवाई क्षेत्र में प्रवेश करते ही उन्हें मार गिराने कोशिश की थी.
इस अभियान में उनकी पत्नी ज्ञान पटनायक भी उनके साथ थीं. ये साहस का काम इन पति-पत्नी ने तब किया था, जब उनका पुुत्र नवीन पटनायक महज एक महीने का ही था. नवीन इन दिनों ओडिसा के मुख्यमंत्री हैं. पटनायक ने तब जर्काता के पास आनन-फानन में अपना विमान उतारा. वहां से वो अपने साथ प्रमुख विद्रोही सुल्तान शहरयार और सुकर्णो को लेकर दिल्ली आए. नेहरू के साथ उनकी गोपनीय बैठक कराई. इसके बाद डॉ. सुकर्णो आज़ाद इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति बने. इस बहादुरी के काम के लिए पटनायक को मानद रूप से इंडोनेशिया की नागरिकता दी गई. उन्हें इंडोनेशिया के सर्वोच्च सम्मान 'भूमि पुत्र' से नवाज़ा गया था.
कहा जाता है कि बीजू पटनायक ने अपनी पत्नी ज्ञानवती सेठी को पहली बार लाहौर में टेनिस के कोर्ट में देखा था. वो टेनिस की अच्छी खिलाड़ी थीं. बीजू उनसे प्यार कर बैठे. दोनों की शादी 1939 में हुई. उनकी शादी में टाइगर मोट विमान की फ्लीट लाहौर पहुंची थी. एक प्लेन को बीजू खुद उड़ा रहे थे. बीजू और ज्ञान के तीन बच्चे हुए, जिसमें बेटा नवीन और बेटी गीता शामिल हैं. बेटी गीता मेहता विश्व प्रसिद्ध लेखिका हैं.
बीजू की पत्नी गीता इस देश की पहली कामर्शियल पायलट भी थीं. बीजू उन्हें विंटर वाइफ कहते थे, क्योंकि वो ओडिसा की जबरदस्त गर्मियों के कारण दिल्ली में रहती थीं और केवल जाड़े के दिनों में ही भुवनेश्वर जाया करती थीं. इस दंपति ने नेपाल के लोकतांत्रिक आंदोलन के दिनों में भी 50 के दशक में साथ मिलकर बहुत काम किया था.
1960 के बाद वे चुनावी राजनीति में आए. ओडिसा के मुख्यमंत्री बने. उनकी क्षमता और योग्यता को देखकर 1962 में चीनी आक्रमण के बाद नेहरू ने उन्हें दिल्ली बुलाया. वो गोपनीय कार्यो में प्रधानमंत्री की सहायता करते रहे.
1975 के आपातकाल का उन्होंने विरोध किया. अन्य नेताओं के साथ उन्हें भी जेल में बंद रहना पड़ा. जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो बीजू को केंद्र में इस्पात मंत्री बनाया. वो फिर उडीसा की जनता दल सरकार के मुख्यमंत्री बने.
बीजू पटनायक का निधन 17 अप्रैल 1997 को ह्रदय और सांस की बीमारी के चलते हो गया.
ओडिसा का वह नेता जो साहसी पायलट था, साथ में जाबांज योद्धा. उसने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया. लव मैरिज की, बाद में ओडिशा का मुख्यमंत्री भी बना...
आज यानी 05 मार्च को बीजू पटनायक का जन्मदिन है. बीजू पटनायक केवल राजनीतिज्ञ ही नहीं, बल्कि एक जांबाज़ पायलट भी थे. उन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया. उनकी प्रेम कहानी भी गजब की थी. वो अपनी बारात खुद डकोटा विमान उड़ाकर ले गए थे. जब उनका बेटा महज हफ्ते भर का था तभी वो और उनकी पत्नी इंडोनेशिया में एक ऐसे साहसिक अभियान पर निकल गए, जिसकी कहानियां आज भी इंडोनेशिया में सुनाई जाती हैं.
साल 1947 में जब पाकिस्तानी हमलावरों ने कश्मीर पर हमला किया, तो बीजू पटनायक ने कश्मीर को बचाने में अहम रोल निभाया. बीजू पायलट थे. वो डकोटा डी सी-3 विमान उड़ाते थे.उन्होंने 27 अक्टूबर को अपने विमान से श्रीनगर की हवाई पट्टी के लिए उड़ान भरी. साथ में 1-सिख रेजिमेंट के 17 जवानों को भी ले गए. यह सुनिश्चित करने के लिए कि कहीं हवाई पट्टी पर दुश्मन का कब्ज़ा तो नहीं है, उन्होंने अपने विमान को हवाई पट्टी के बेहद नज़दीक उड़ाया. जब देखा कि रास्ता एकदम साफ है तो उन्होंने अपने विमान को वहीं उतार दिया. वहां पहुंचे भारतीय सैनिकों ने घुसपैठियों को खदेड़ दिया था.
बीजू पटनायक को एविएशन इंडस्ट्री में इतनी दिलचस्पी थी कि उन्होंने पायलट बनने के अपने सपने के लिए पढ़ाई तक छोड़ दी. ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने प्राइवेट एयरलाइंस के साथ उड़ान भरनी शुरू की, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने रॉयल इंडियन एयरफोर्स जॉइन कर ली. इसी दौरान उन्होंने कलिंग एयरलाइन की भी शुरुआत की. बिजयानंदा पटनायक को लोग प्यार से बीजू पटनायक कहते थे. बीजू पटनायक की पहचान एक स्वतंत्रता सेनानी, साहसी पायलट और बड़े राजनेता के रूप में रही है.
आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ थे और उन्होंने बीजू पटनायक को इंडोनेशिया को डचों से मुक्त कराने में मदद करने की ज़िम्मेदारी दी थी. नेहरू ने इंडोनेशियाई लड़ाकों को डचों से बचाने के लिए कहा था. नेहरू के कहने पर बीजू पटनायक पायलट के तौर पर 1948 में ओल्ड डकोटा एयरक्राफ़्ट लेकर सिंगापुर से होते हुए जकार्ता पहुंचे थे. यहां वो इंडोनेशियाई स्वतंत्रता सेनानियों को बचाने पहुंचे थे. डच सेना ने पटनायक के इंडोनेशियाई हवाई क्षेत्र में प्रवेश करते ही उन्हें मार गिराने कोशिश की थी.
इस अभियान में उनकी पत्नी ज्ञान पटनायक भी उनके साथ थीं. ये साहस का काम इन पति-पत्नी ने तब किया था, जब उनका पुुत्र नवीन पटनायक महज एक महीने का ही था. नवीन इन दिनों ओडिसा के मुख्यमंत्री हैं. पटनायक ने तब जर्काता के पास आनन-फानन में अपना विमान उतारा. वहां से वो अपने साथ प्रमुख विद्रोही सुल्तान शहरयार और सुकर्णो को लेकर दिल्ली आए. नेहरू के साथ उनकी गोपनीय बैठक कराई. इसके बाद डॉ. सुकर्णो आज़ाद इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति बने. इस बहादुरी के काम के लिए पटनायक को मानद रूप से इंडोनेशिया की नागरिकता दी गई. उन्हें इंडोनेशिया के सर्वोच्च सम्मान 'भूमि पुत्र' से नवाज़ा गया था.
कहा जाता है कि बीजू पटनायक ने अपनी पत्नी ज्ञानवती सेठी को पहली बार लाहौर में टेनिस के कोर्ट में देखा था. वो टेनिस की अच्छी खिलाड़ी थीं. बीजू उनसे प्यार कर बैठे. दोनों की शादी 1939 में हुई. उनकी शादी में टाइगर मोट विमान की फ्लीट लाहौर पहुंची थी. एक प्लेन को बीजू खुद उड़ा रहे थे. बीजू और ज्ञान के तीन बच्चे हुए, जिसमें बेटा नवीन और बेटी गीता शामिल हैं. बेटी गीता मेहता विश्व प्रसिद्ध लेखिका हैं.
बीजू की पत्नी गीता इस देश की पहली कामर्शियल पायलट भी थीं. बीजू उन्हें विंटर वाइफ कहते थे, क्योंकि वो ओडिसा की जबरदस्त गर्मियों के कारण दिल्ली में रहती थीं और केवल जाड़े के दिनों में ही भुवनेश्वर जाया करती थीं. इस दंपति ने नेपाल के लोकतांत्रिक आंदोलन के दिनों में भी 50 के दशक में साथ मिलकर बहुत काम किया था.
1960 के बाद वे चुनावी राजनीति में आए. ओडिसा के मुख्यमंत्री बने. उनकी क्षमता और योग्यता को देखकर 1962 में चीनी आक्रमण के बाद नेहरू ने उन्हें दिल्ली बुलाया. वो गोपनीय कार्यो में प्रधानमंत्री की सहायता करते रहे.
1975 के आपातकाल का उन्होंने विरोध किया. अन्य नेताओं के साथ उन्हें भी जेल में बंद रहना पड़ा. जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो बीजू को केंद्र में इस्पात मंत्री बनाया. वो फिर उडीसा की जनता दल सरकार के मुख्यमंत्री बने.
बीजू पटनायक का निधन 17 अप्रैल 1997 को ह्रदय और सांस की बीमारी के चलते हो गया.
credit न्यूज़ १८ नेटवर्क
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अगर यह नेता पायलट न होता तो कश्मीर हमारा न होता
Reviewed by DabwaliNews
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8:57:00 PM
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क्या डबवाली में BJP की इस गलती को नजर अंदाज किया जा सकता है,आखिर प्रशासन ने क्यों नहीं की कार्रवाई
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