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नगर परिषद की प्रधानगी के चुनाव पर स्टे का मामला,पार्षद बलजीत कौर ने वापस मांगी याचिका,सरकार ने किया विरोध,अगली सुनवाई 8 अक्टूबर को,हाईकोर्ट ने साक्ष्य प्रस्तुत करने के दिए आदेश

डबवाली न्यूज़ डेस्क 
सिरसा। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में सोमवार को वीडियो कांफे्रंसिंग के जरिए नगर पार्षद बलजीत कौर अपने वकील के साथ पेश हुई और उसने अदालत से प्रधान पद के लिए चुनाव पर स्टे याचिका को वापस लेने की अपील की।सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल पेश हुए और उन्होंने याचिका वापस लेने का विरोध किया। इसके साथ ही अन्य नगर पार्षदों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल भी पेश हुए। सरकार की ओर से याचिका वापस लेने के आग्रह का विरोध किया गया। कहा गया कि याचिकाकत्र्ता बलजीत कौर द्वारा कानून का दुरुपयोग किया गया है। इसके साथ ही उसने जनता के विश्वास से भी खिलवाड़ किया है। सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल ने दलील दी कि उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करने वाली पार्षद बलजीत कौर की ओर से सार्वजनिक रूप से इस बात से इंकार किया गया था कि उसने याचिका दाखिल की है। पार्षद की ओर से सिरसा में धार्मिक स्थल में इस आश्य की शपथ भी ली गई। उसकी ओर से याचिका में अपने हस्ताक्षर न होने, दस्तावेज न देने की बात कहीं गई थी। उसने दुर्भावनापूर्ण इराद से स्टे याचिका दाखिल की थी, ऐसे में अब उसकी याचिका वापस न की जाए बल्कि उसे डिस्क्वालिफाई किया जाए। हाईकोर्ट ने मामले में दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद सरकार को पार्षद बलजीत कौर मामले के तमाम साक्ष्य प्रस्तुत करने के आदेश दिए है। मामले की अगली सुनवाई के लिए 8 अक्टूबर का दिन तय किया गया है। 
क्या था मामला
सिरसा नगर परिषद के पिछले लगभग दो साल से रिक्त प्रधान पद के लिए प्रशासन की ओर से पहले 4 अगस्त को और फिर 11 अगस्त का दिन तय किया गया था। जिला प्रशासन को 10 अगस्त की रात्रि को इस आशय की जानकारी प्राप्त हुई कि पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय से प्रधान के चुनाव बारे स्टे हासिल कर लिया गया है। न्यायालय से स्टे 7 अगस्त को ही प्राप्त कर लिया गया था। स्टे की याचिका पार्षद बलजीत कौर की ओर से दिखाई गई थी। जिसके कारण 11 अगस्त को प्रधान के लिए चुनाव को टाल दिया गया। मामले ने उस समय तूल पकड़ा, जब नगर पार्षद बलजीत कौर कई कांग्रेसी नेताओं के साथ नगर परिषद कार्यालय पहुंचीं और उसने हंगामा खड़ा कर दिया। उसकी ओर से कहा गया कि उसने हाईकोर्ट में स्टे के लिए याचिका नहीं लगाई। कांग्रेसियों ने अन्य दलों के नेताओं पर षड्यंत्र रचने के आरोप जड़ें। जब मामले में पार्षद पति हरदास सिंह रिंकू की ओर सुई घूमीं, तब पार्षद सपरिवार गुरुद्वारा साहिब में पहुंची और उसने याचिका दाखिल करने से स्पष्ट इंकार किया। इस वजह से पूरे मामला रहस्यमय बन गया कि आखिर किसने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की? जब पार्षद बलजीत कौर ने याचिका दाखिल नहीं की तो किसने उसका नाम लेकर याचिका दाखिल की? याचिका दाखिल करने के लिए पूरा प्रोसेस अपनाना पड़ता है, तब ऐसा कौन है जिसने यह खिलवाड़ किया है? आखिर कौन है जो अदालत को गुमराह करके प्रधान के चुनाव में बाधा उत्पन्न करना चाहता है? इसी कारण सिरसावासियों की हाईकोर्ट में पेशी को लेकर उत्सुकता बनी हुई है कि आखिर इसका क्या परिणाम निकलता है। 

खुलने लगी हैं परतें
बीती 11 अगस्त को पार्षद बलजीत कौर की ओर से जो शंकाएं और सवाल उठाए जा रहे थे कि किसने याचिका दाखिल की, उनका संभवत: आज उस समय जवाब मिल गया। जब वे याचिका वापस लेने के लिए अपने वकील के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पेश हुई। पार्षद बलजीत कौर ने 11 अगस्त को ऐलानिया कहा था कि उसने स्टे याचिका के लिए कभी भी हस्ताक्षर नहीं किए। न ही उसने किसी वकील को अपनी आईडी व अन्य दस्तावेज मुहैया करवाए। उसने इससे भी इंकार किया कि वह कभी भी चंडीगढ़ नहीं गई। उसने यह भी कहा कि वह कभी भी वकील से नहीं मिलीं। पार्षद के पति हरदास सिंह रिंकू ने भी इससे इंकार किया। उन्होंने सपरिवार शपथ भी खाई और पूरे मामले को षड्यंत्र बताया।पार्षद बलजीत कौर द्वारा उठाए गए सवाल की वजह से ही मामला तूल पकड़ा, अन्यथा चुनाव पर स्टे के लिए याचिका दाखिल करना कोई अपराध नहीं था। जनमानस के दिमाग में यह सवाल कौंधने लगा कि आखिर वो कौन है, जिसने पार्षद बलजीत कौर के नाम से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की? किसकी मंशा है कि प्रधान के चुनाव ही न हों? पूरा मामला ही रहस्यमयी पहेली बन गया था, लेकिन 27 अगस्त को पार्षद की ओर से याचिका वापस लेने की अपील की गई, जिसका सरकार ने विरोध किया। मामले में आज 5 अक्टूबर की तारीख तय की गई थी और अब हाईकोर्ट ने सरकार को मामले में साक्ष्य पेश करने के आदेश दिए है, जिस पर 8 अक्टूबर को सुनवाई होगी। ऐसे में पार्षद बलजीत कौर की मुश्किलें कम होती दिखाई नहीं दे रहीं!
जिस प्रकार से रहस्य से पर्दा उठने लगा है, उससे स्थानीय कांग्रेसी नेताओं को भी झटका लगा होगा कि आखिर उन्होंने किसका साथ दिया? अब यह भी स्पष्ट हो गया है कि स्टे याचिका के लिए हलोपा पर फोड़ा जा रहा ठीकरा पूरी तरह से राजनीति का हिस्सा था। यह कि शासन-प्रशासन पर उठाई गई ऊंगली भी प्रयोजित थी?

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