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झाग-सा बैठा सिरसा में सफाई अभियान - पखवाड़ा भर चलीं औपचारिकता, फिर वहीं हालात, हर ओर कचरा

डबवाली न्यूज़ डेस्क 
सिरसा। नगर परिषद द्वारा चलाया गया सफाई अभियान एक पखवाड़े में ही सिमट कर रह गया। वैसे तो अभियान की शुरूआत में ही यह हॉफने लगा था। डेरा प्रेमियों व अन्य सामाजिक संगठनों की बदौलत अभियान का श्रीगणेश हो पाया। जिसकी वजह से पखवाड़ाभर औपचारिकता की गई और अब फिर से वही हालात बन चुके है। हर ओर कचरा-ही-कचरा नजर आने लगा है। हैरतअंगेज बात तो यह है कि पखवाड़ाभर चले अभियान में शहर का अधिकांश एरिया इससे अनभिज्ञ ही रहा। जिन क्षेत्रों में महीना, साल, 10 साल से सफाई नहीं हुई, वहां अभियान के दौरान भी स्वच्छता अभियान के बोल सुनाई नहीं पड़ें। कचरे में रहकर जीवनयापन करने वालों की स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है। दरअसल, हर वर्ष स्वच्छता अभियान चलाने की नौटंकी की जाती है। व्यवस्था बदलने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। हरेक केवल औपचारिकता ही पूरी करने को अपनी ड्यूटी समझता है, इसलिए हालात में कोई बदलाव नहीं आता। न तो नगर परिषद में सफाई कर्मियों की संख्या में बढ़ौतरी की जाती है और न ही सफाई कर्मियों से ली जाने वाली बेगार ही कम होती है। सफाई कर्मियों को वीआईपी एरिया में ही अधिक तैनात किया जाता है। शेष शहर की प्रशासनिक स्तर पर ही अनदेखी होती है। शहर की आधी से अधिक आबादी ने तो महीना-दो महीना नहीं बल्कि कई-कई सालों से सफाई कर्मियों को ही नहीं देखा होगा? सफाई कर्मचारियों को इतना बड़ा एरिया दे दिया जाता है कि अकेले व्यक्ति द्वारा पूरे वार्ड में सफाई करना भी संभव नहीं है। ऐसे में कुछ एरिया में ही सफाई की औपचारिकता पूरी की जाती है, शेष एरिया इससे वंचित ही रहता है। यदि नियमित रूप से सफाई हो तो स्वच्छता अभियान की आवश्यकता ही न पड़े।
स्लम बस्तियों की नहीं बदली तस्वीर
भले ही कागजों में कितने ही सफाई अभियान चला लों लेकिन शहर की स्लम बस्तियों की हालात में कभी बदलाव नहीं आया। जेजे कालोनी, चत्तरगढ़पट्टी, सिंगीकाट मोहल्ला सहित अन्य दलित बस्तियों में सफाई नाम की कोई चीज दिखाई नहीं पड़ती। इन कालोनियों में सफाई के नाम पर महज खानापूर्ति की जाती है। इन कालोनियों की बदत्तर हालात ही नगर परिषद की कारगुजारियों को बयां करती है। 
आज भी खुले में फैंका जाता है कचरा
नगर परिषद की ओर से शहर के सभी 31 वार्डों में न तो कचरे के लिए डंपिग स्थान बनाए गए है और न ही घर-घर से कचरा एकत्रित करने की व्यवस्था। यानि प्रशासन के स्तर पर ही लोगों को खुले में कूड़ा फैंकने के लिए मजबूर किया जाता है। अचरज की बात यह है कि सरकार की ओर से कचरा जलाने पर रोक लगाई गई है और कचरा जलाने पर जुर्माने का भी प्रावधान है। जबकि सफाई कर्मचारी न तो कचरे को कहीं पर डंप करते है और न ही जलाते है। तब कचरा कहां जाता है? घर-घर से कचरा एकत्रित करने वाली गाडिय़ां भी सभी गलियों में नहीं जाती। तब इन गलियों के लोग घर का कचरा कहां फैंकते है? नगर परिषद की ओर से गीला और सूखा कचरा अलग-अलग करवाने की बात कहीं जाती है, जबकि व्यवहार में कचरे के निस्तारण के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
बाईपास पर मलबे के ढेर
नगर परिषद द्वारा भले ही मलबा निस्तारण के लिए हिदायतें जारी की गई है, लेकिन मलबे को शहर से दूर फैंकने की बजाए आसपास के एरिया में ही डाल दिया जाता है। नगर परिषद को मिनी बाईपास से जोडऩे वाले मार्ग पर ही मलबे के ढेर लगे है। सीडीएलयू के सामने की दिशा में और सिविल अस्पताल को जाने वाले मार्ग के किनारों पर लोगों ने मलबा डालकर कचरा-कचरा कर रखा है।
पहले सफाई, फिर कचरा
लोगों की आदत भी पुरानी ही बनी हुई है। कचरे में ही रहना। बाजारों में दिनभर गंदगी के बने रहने की वजह भी यही है। सफाई कर्मियों की ओर से सुबह-सवेरे ही सफाई कर दी जाती है। दुकानदार 8-9 बजे के बाद आते है। एक-एक करके सफाई करते है और दुकान का कचरा सड़क पर फैंकते है। यही कचरा हवा के साथ कभी इधर और कभी उधर फैलता। इस कचरे की सफाई अगले दिन सुबह होती है और कुछ देर बाद फिर से कचरा फैला दिया जाता है।

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