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नगर परिषद में 63 लाख की जीएसटी चोरी का मामला , 27 माह बीतने पर भी खुले घूम रहें भ्रष्टाचार के आरोपी

Dabwalinews.com
नगर परिषद सिरसा के भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा गबन किए गए 63 लाख के जीएसटी के मामले में 27 माह बीत जाने पर भी कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है।गबन के आरोपी आज भी खुले घूम रहे है। न शासन और न ही प्रशासन के स्तर पर जीएसटी चोरों के खिलाफ कोई कार्रवाई ही अमल में लाई गई है। पुलिस में एक अदद एफआईआर तक दर्ज नहीं करवाई है। प्रयास किया जा रहा है कि मामला रफा-दफा हो जाए।
वर्णनीय है कि माल और सेवाकर आसूचना महानिदेशालय (डायरेक्टर जनरल ऑफ जीएसटी इन्टेलिजेंस) ने अक्टूबर-2018 में 63 लाख रुपये के जीएसटी घोटाले का पर्दाफाश किया था। नगर परिषद द्वारा दुकानों के किराए से जो आय अर्जित की जाती है, उस पर नगर परिषद को जीएसटी की अदायगी करनी होती है। नगर परिषद के अधिकारियों व कर्मचारियों ने सुनियोजित ढंग से जीएसटी की अदायगी करने में बड़ा खेल खेला। बैंक में चालान के माध्यम से मामूली रकम जमा करवाई और अपने रिकार्ड में राशि कई गुणा बढ़ाकर दर्ज कर दी।
डीजीजीआई (डायरेक्टर जनरल ऑफ जीएसटी इन्टेलिजेंस) ने जब नगर परिषद का लेखा-जोखा देखा तो उनकी ओर से जांच की गई। जांच पड़ताल में यह तथ्य सामने आया कि अप्रैल-2013 से जून-2017 की अवधि में देय 72 लाख 84 हजार 398 रुपये की अदायगी की बजाए महज 9 लाख 77 हजार 599 रुपये ही जीएसटी के रूप में खजाने में जमा करवाए गए है। जबकि 63 लाख 23 हजार 244 रुपये का गबन कर डाला गया है। डीजीजीआई की ओर से गबन के इस मामले में नगर परिषद के ईओ, राजेंद्र मिढ़ा, तत्कालीन अकाऊंटेंट केसरी सिंह, कैशियर बृजलाल, कैशियर नरेश कुमार को नोटिस जारी किया।मामले का खुलासा होने पर नगर परिषद द्वारा अपने स्तर पर जांच शुरू की गई। इसके बाद मामला उपायुक्त के पास पहुंचा। फिर से जांच बैठाई गई। इस बीच गबन करने वालों द्वारा कुछ राशि सरकारी खजाने में जमा भी करवा दी गई। लेकिन सवा दो साल से भी अधिक का लंबा अरसा बीत जाने पर भी न तो आजतक पूरी राशि जमा हुई है और न ही गबन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई ही अमल में लाई गई है। आजतक गबन के इस मामले की पुलिस में शिकायत तक नहीं की गई है। प्रयास किए जा रहे है कि मामला रफा-दफा हो जाए।
 षड्यंत्र बेनकाब, कार्रवाई बाकी
 लाखों रुपये के जीएसटी का गबन बेहद सुनियोजित ढंग से किया गया। नगर परिषद द्वारा पीएनबी में चालान के माध्यम से जीएसटी की राशि जमा करवाई गई। डीजीजीआई द्वारा की गई पड़ताल में यह तथ्य सामने आया कि अप्रैल-2013 में नगर परिषद के कर्मियों ने बैंक में चालान 2067 रुपये का भरा और इस चालान पर एक लाख 2 हजार 67 रुपये अंकित कर दिया। अंकों में 2067 के आगे 10 लिख दिया। शब्दों में भी एक लाख आगे अंकित कर दिया गया। इस प्रकार महज 2067 रुपये की जमा करवा करवाकर राशि को एक लाख 2067 रुपये दर्शाकर एक बार में ही एक लाख रुपये डकार लिए। इसी प्रकार यह सिलसिला जून-2017 तक चला।
 फर्जी मोहरों का किया गया इस्तेमाल!
नगर परिषद के अधिकारियों को जीएसटी गबन का ऐसा चस्का लगा कि उन्होंने पहले थोड़ी-थोड़ी राशि को डकारा और फिर पूरी राशि ही डकारनी शुरू कर दी। चालान राशि में छेड़छाड़ का सिलसिला अप्रैल 2013 से फरवरी-2015 की अवधि तक चला। इसके बाद मार्च 2015 से जून-2017 की अवधि में तो बैंक की फर्जी मोहर लगाकर पूरी राशि ही डकार ली। यानि मार्च में बैंक चालान 121697 रुपये का भरा गया और इस पर स्वयं ही बैंक की मोहर लगाकर राशि डकार ली। सरकारी खजाने में एक पैसा भी जमा नहीं करवाया गया। जब लगातार 28 महीने तक सरकारी खजाने में एक पैसा भी जमा नहीं हुआ, तब डायरेक्टर जनरल ऑफ जीएसटी इन्टेलिजेंस ने इसकी पड़ताल की। पड़ताल किए जाने पर ही लाखों का घोटाला सामने आया। अचरज की बात यह है कि दो साल से अधिक अवधि तक बिना पैसा जमा करवाए ही पूरी की पूरी राशि डकार ली गई। फर्जी हस्ताक्षर और फर्जी मोहरों का इस्तेमाल करके किए गए गबन के मामले के बावजूद किसी भी अधिकारी-कर्मचारी पर कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं करवाया गया है। आखिर क्यों?
दो दर्जन अधिकारी-कर्मचारी संदेह के घेरे में!
 63 लाख रुपये से अधिक के गबन के इस मामले में नगर परिषद के तत्कालीन आधा दर्जन कार्यकारी अधिकारियों (ईओ) सहित दो दर्जन लोगों के लपेटें में आने की आशंका है। बताया जाता है कि गबन के इस मामले में इतने लोगों की कथित संलिप्तता की वजह से ही पूरे मामले को दबाने के प्रयास किए जा रहे है। यही वजह है कि आजतक किसी अधिकारी अथवा कर्मचारी के खिलाफ कोई मामला तक दर्ज नहीं करवाया गया है। लाखों की जीएसटी चोरी के मामले में शासन व प्रशासन मौन साधे हुए है।दरअसल, नगर परिषद को टैक्स की अदायगी करने के लिए नगद निकासी की जरूरत ही नहीं थी। पंजाब नेशनल बैंक में नगर परिषद का खाता है। बैंक के नाम चैक काटकर दिया जा सकता था और बैंक चैक के आधार पर चालान जमा कर देता। ऐसे में गबन की कोई गुंजाइश ही शेष नहीं रहती। मगर, किया क्या गया? ईओ के हस्ताक्षरित चैक से पीएनबी से नगदी की निकासी की गई। नगदी को चालान जमा करवाने के लिए फिर पीएनबी में जमा करवाया गया। इस चालान में छेड़छाड़ की गई और 63 लाख से अधिक रुपये का गबन हुआ। यह जांच का विषय है कि अप्रैल 2013 से जून-2017 की अवधि में कार्यरत रहें ईओ ने बैंक से कैश निकलवाकर कैश से ही चालान भरने में रूचि क्यों दर्शाई? यह भी कैसे संभव हो सकता है कि नगर परिषद के कैशियर स्तर के कर्मचारी अथवा बाहरी व्यक्ति 63 लाख रुपये का गबन कर जाए? यह भी संभव नहीं लगता कि सवा चार साल तक गबन का सिलसिला चलता रहें और ईओ स्तर के अधिकारी इससे अनभिज्ञ रहें। नगर परिषद के कार्यकारी अधिकारियों की कथित संलिप्तता की वजह से ही मामला हाई प्रोफाइल हो गया और आज तक उसे दबाया गया है। अन्यथा कैशियर स्तर के कर्मचारियों को कब का मसल दिया गया होता?
 सूचना आयोग के आदेश की भी पालना नहीं
नगर परिषद में जीएसटी चोरी के मामले में आरटीआई एक्टिविस्ट इंद्रजीत की ओर से आरटीआई मांगी गई। नगर परिषद की ओर से सूचना प्रदान नहीं की गई। मामला प्रथम अपीलीय अधिकारी-सह-नगराधीश के पास पहुंचा। नगराधीश की ओर से भी नगर परिषद को सूचना देने के आदेश दिए गए। मगर, सूचना नहीं दी गई। मामला द्वितीय अपील में राज्य सूचना आयोग में पहुंचा। राज्य सूचना आयुक्त जय सिंह बिश्नोई ने 2 मार्च 2020 को सूचना प्रदान करने के आदेश दिए। लेकिन नगर परिषद के अधिकारियों ने 11 माह बीत जाने पर भी मांगी गई सूचना प्रदान नहीं की गई है। आरटीआई में सूचना प्रदान करने पर नगर परिषद का भंडाफोड़ होना तय है। अचरज की बात यह है कि गबन किसी ने भी किया हो, मगर वर्तमान अधिकारी-कर्मचारी सूचना देने से आज भी कतरा रहे है। सूचना आयोग के आदेशों की भी पालना नहीं की जा रही, आखिर क्यों?

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