Join Us On What'apps 09416682080

?? Dabwali ????? ?? ???? ????, ?? ?? ?? ??? ???? ??????? ???? ?? ??? ?? ??????? ?? ?????????? ?? ?? ??????, ?? ????? ?? ???? ???????? ???? ???? dblnews07@gmail.com ?? ???? ??????? ???? ?????? ????? ????? ?? ????? ?????????? ?? ???? ???? ??? ?? ???? ?????? ????? ???? ????? ??? ?? 9416682080 ?? ???-??, ????-?? ?? ?????? ?? ???? ??? 9354500786 ??

Trending

3/recent/ticker-posts

Labels

Categories

Tags

Most Popular

Contact US

Powered by Blogger.

DO YOU WANT TO EARN WHILE ON NET,THEN CLICK BELOW

Subscribe via email

times deal

READ IN YOUR LANGUAGE

IMPORTANT TELEPHONE NUMBERS

times job

Blog Archive

टाईटल यंग फ्लेम ही क्यूं?

Business

Just Enjoy It

Latest News Updates

Followers

Followers

Subscribe

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

Most Popular

चेयरमैन आदित्य देवीलाल चौटाला ने किया दो नए खरीद केंद्र का शिलान्यास व एक सड़क का उद्घाटन
मसाज सेंटर पर पुलिस का छापा ,पंजाब पुलिसकर्मी समेत चार दबोचे
इंकम टैक्स के छापे पंजाब में, कंपकंपी हरियाणा में! 25 दिसंबर को पूरे हरियाणा में मंडी बंद रखने का ऐलान
स्टेराइयड की दवा की तलाश में की छापेमारी, ब्लैक फंगस की वजह से किया गया है प्रतिबंधित
प्रदेश में हुआ सीसीटीवी खरीद घोटाला:कुमारी सैलजा
-दुकानदारों व वर्कशॉप संचालकों को डस्टबीन का इस्तेमाल करने का किया आह्वान : विजयंत शर्मा
 HPS स्कूल में वर्च्युल तरीके से मनाया गया  मिसाइल "मैन डॉक्टर अब्दुल कलाम का जन्म दिवस कलाम को सलाम"
 12800 नशीलीं प्रतिबंधित गोलियों सहित दो व्यक्ति काबू
 Corona Update - 65 पॉजिटिव, 60 डिस्चार्ज
पुलिस अधीक्षक से बढ़ी अपेक्षाएं,सफेदपॉश अपराधियों पर डालनी होगी नकेल, समाज को खोखला कर रहे बुकीज

Popular Posts

Secondary Menu
recent
Breaking news

Featured

Haryana

Dabwali

Dabwali

health

[health][bsummary]

sports

[sports][bigposts]

entertainment

[entertainment][twocolumns]

Comments

#Redfort क्या आप को पता है लाल क़िले पर कभी भगवा झंडा भी लहराया है ?




इमेज स्रोत,BBC
26 जनवरी 2021 को दिल्ली में किसानों के ट्रैक्टर मार्च के दौरान कई लोग लाल क़िले पर जमा हो गए. इस दौरान लाल क़िले पर सिखों का धार्मिक झंडा 'निशान साहेब' भी फहराया गया, देश भर में इसकी आलोचना हुई.लाल क़िले पर हर साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर देश के प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं और अपना संबोधन देते हैं. ऐसे में गणतंत्र दिवस के मौके पर किसी एक धर्म से जुड़े झंडे को लाल क़िले पर फहराने को लेकर बहस छिड़ गई है.लोग आलोचना तो कर ही रहे हैं लेकिन सोशल मीडिया पर एक सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि क्या कभी लाल क़िले पर भगवा झंडा फहराया गया है? क्या मराठाओं ने लाल क़िले पर अपना भगवा झंडा फहराया है?
वैसे तो लाल क़िले पर 26 जनवरी को जिस तरह से निशान साहेब का झंडा फहराया गया वह सांकेतिक ही था लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा कि ऐसी घटनाओं का ऐतिहासिक संदर्भ रहा है.1783 में दिल्ली में शाह आलम द्वितीय का शासन था. खालसा पंथ ने जस्सा सिंह रामगादिया के नेतृत्व में दिल्ली के तख्ते को चुनौती दी. इस लड़ाई में खालसाओं की जीत हुई थी. इसे तब दिल्ली फ़तेह कहा गया था.
इसके पांच साल बाद, 1788 में लालक़िले पर मराठाओं ने भगवा झंडा फहराए गए थे. हालांकि मराठा महादिजे शिंदे दिल्ली के मुगल बादशाह को संरक्षण दिया था. तब उस वक्त में मुगल और मराठा- दोनों के झंडे कुछ समय तक लालक़िले पर फहराए गए थे.दरअसल संघर्ष के समय में किसी स्थान पर झंडे फहराना का रणनीतिक महत्व होता है, जहां पर जिसका झंडा फहराया जाता है उस जगह पर उन लोगों का आधिपत्य होता है.
लेकिन इतिहासकार इंद्रजीत सावंत के मुताबिक लालक़िले पर जब मराठाओं ने भगवा झंडा फहराया तब वह दिल्ली पर आधिपत्य के लिए नहीं फहराया गया था, बल्कि दोस्ती के लिए फहराया गया था.



इमेज स्रोत,GETTY IMAGES
ऐसे में एक सवाल ये भी उठ रहा है कि 18वीं शताब्दी में मराठा काफी प्रभावशाली थे, तब भी उन्होंने दिल्ली पर अपना दावा क्यों नहीं किया?
मुग़लों को नाममात्र का शासक मानने वाले मराठा तब सत्ता में आए थे जब मुग़लों का ताक़तवर दौर बीत गया था. औरंगज़ेब के जमाने में मुग़ल सल्तनत उस शिखर पर था जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. लेकिन औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद मुग़ल सल्तनत बिखरने लगा और बाद में यह केवल दिल्ली और आसपास के इलाक़ों तक सिमट कर रह गया था. यह वह दौर था जब जाट, राजपूत, सिख और मराठा सबके सब काफी प्रभावशाली हो गए थे.



इमेज स्रोत,PENGUIN INDIA
औरंगज़ेब के बाद उनके 65 साल के बेटे बहादुर शाह ज़फ़र दिल्ली की सत्ता पर बैठे. उन्होंने ना तो शाहू महाराज और ना ही ताराबाई के शासन को स्वीकार किया. बालाजी विश्वनाथ शाहू महाराज के पेशवा बने तो 1711 में उन्होंने चौठाई और सरदेशमुख के इलाक़े को मुगलों से छीन लिया.
बहादुर शाह ज़फ़र ने एक तरह से शाहू महाराज के साथ उदारता दिखाई, इसके बदले में शाहू महाराज अपनी सेना के ज़रिए दिल्ली की सुरक्षा के लिए तैयार हो गए. छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन के 39 साल के बाद मुगलों और मराठाओं का संघर्ष थम गया था.
बहादुर शाह के बाद दिल्ली की गद्दी पर मोहम्मद शाह बैठे. वे कई सालों तक दिल्ली के सुल्तान रहे लेकिन ईरान से आए नादिर शाह ने उन्हें चुनौती दी. 1739 में नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला किया. करनाल में नादिर शाह और मोहम्मद शाह की सेना की भिड़ंत हुई.
नादिर शाह ने मोहम्मद शाह को हरा दिया. इसके बाद नादिर शाह ने दिल्ली में लूटपाट मचाई. उस दौर में करीब 70 करोड़ रुपये की संपत्ति नादिरशाह लूट कर अपने साथ ईरान ले गया. वह अपने साथ कोहिनूर हीरा भी लेता गया. हालांकि उसने मोहम्मद शाह को सिंधु नदी की सीमा तक राज करने के लिए छोड़ दिया.
इस घटना के बाद ही मराठा सरदारों और ईस्ट इंडिया कंपनी को लगा था कि दिल्ली की सल्तनत काफी कमजोर हो चुकी है. मोहम्मद शाह की मृत्यु 1748 में हुई. मुग़ल साम्राज्य में इसके बाद उत्तराधिकार के लिए संघर्ष छिड़ गया, इससे भी विपक्षियों को फ़ायदा पहुंचा.
इसके बाद नादिरशाह के सेनापति अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली की सल्तनत को कई बार लूटा.



इमेज स्रोत,MUSEE GIMET PARIS

पानीपत से बदला भारत का इतिहास
पानीपत की लड़ाई को लेकर एक दिलचस्प बात कही जाती है, यह लड़ाई इस बात के लिए नहीं थी कि भारत पर किसका शासन होगा बल्कि इस बात के लिए थी कौन शासन नहीं करेगा. क्योंकि इस युद्ध में लड़ने वाले दोनों तरफ की सेनाओं को कोई प्रत्यक्ष फ़ायदा नहीं होने वाला था.
अहमद शाह अब्दाली और मराठा दिल्ली पर शासन नहीं कर सकते थे लेकिन दोनों सेनाओं को इस युद्ध से नुकसान हुआ और दोनों की सीमाएं कम हो गई थीं. यही वजह है कि दोनों फिर युद्ध की तैयारी में जुट गए थे.
1761 में माधवराव पेशवा बने. 11 साल के अपने पेशवाई में उन्होंने मराठा ताक़त के स्वर्णिम दौर को फिर से हासिल करने की कोशिश की.माधवराव ने निज़ाम को हराया. मैसूर में टीपू सुल्तान को फिरौती देने के लिए मज़बूर किया. इसके अलावा जाट और राजपूत शासकों से अपने संबंधों को बेहतर किया और उत्तर भारत में अपने दबदबे को बढ़ाया.
माधवराव के शासनकाल में केवल शाह आलम द्वितीय को पेशवा पेंशन देते थे. इसके बदले में मराठा शासकों का एक चौथाई उत्तर भारत पर शासन था. एक दौर ऐसा भी था जब मराठा अपने राज्य की एक चौथाई हिस्से पर काबिज़ नहीं थे लेकिन वह दौर भी उन्होंने देखा जब उत्तर भारत के एक चौथाई हिस्से पर उनका शासन था.



इमेज स्रोत,GETTY IMAGES
इमेज कैप्शन,अहमदशाह अब्दाली
यह वह दौर था जब मराठाओं ने दिल्ली पर अपना दावा ठोका होता तो मुग़ल शायद ही उनको चुनौती देने की स्थिति में थे. हालांकि दिल्ली के आस पास के शासक ज़रूर मराठाओं के ख़िलाफ़ संघर्ष करते.
शायद यही वजह रही होगी कि मराठाओं ने दिल्ली पर अपना दावा नहीं ठोका क्योंकि उन्हें आशंका थी कि संघर्ष छिड़ने पर आस पास के शासक विरोध करेंगे और उससे मराठाओं की आमदनी कम होगी.माधवराव की मृत्यु 1772 में हुई. उनके निधन के बाद नारायणराव पेशवा बने. 1773 में उनकी हत्या कर दी गई और तब मां के पेट में ही पल रहे सवाई माधवराव पेशवा बने. वे एक दुर्घटना में मारे जाने से पहले 1795 तक पेशवा रहे.



इमेज स्रोत,GETTY IMAGES
महादजी शिंदे की रणनीति
उत्तर भारत पर शासन करने वाले सबसे शक्तिशाली मराठा शासक महादजी शिंदे हुए. 1788 में रोहिल्ला सरदार गुलाम कादिर ने मुगल शासक शाह आलम को बंधक बना लिया. शाह आलम ने भागकर महादजी शिंदे से मदद मांगी. शिंदे ने गुलाम कादिर को हराकर उन्हें मौत की सजा दी.शाह आलम की रक्षा करने के चलते महादजी शिंदे को नैब ए मुनैब की उपाधि मिली. महादजी शिंदे काफ़ी ताक़तवर थे लेकिन उनका ज़्यादा समय नाना फड़णवीस से मतभेद में बीता. उनका इंदौर के होल्कर सियासत से भी नहीं बनती थी. नाना फड़णवीस और शिंदे के बाद, मराठाओं की ताक़त कम होने लगी.



इमेज स्रोत,GETTY IMAGES
मराठाओं ने दिल्ली पर शासन क्यों नहीं किया?
इतिहासकार इंद्रजीत सावंत इस सवाल के जवाब में कहते हैं, "छत्रपति शिवाजी महाराज, छत्रपति संभाजी महाराज और महारानी ताराबाई के बाद किसी भी मराठा शासक की दिलचस्पी दिल्ली में नहीं थी. वे सीधे तौर पर दिल्ली पर राज करने के लिए उत्सकु नहीं थे. वे दिल्ली सल्तनत का विरोध नहीं कर पाए. सदाशिवराव भाऊ पेशवा और महादजी शिंदे काफ़ी ताक़तवर थे, वे दिल्ली पर दावा कर सकते थे लेकिन उन्होंने दिल्ली सल्तनत के ख़िलाफ़ विरोध नहीं किया."दिल्ली पर मराठाओं के प्रभुत्व के बारे में दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफेसर डॉ. अनिरुद्ध देशपांडे ने बताया, "18वीं शताब्दी में, देश के अधिकांश हिस्से पर मराठाओं का शासन था. इसे आप तीन चरणों में देख सकते हैं. पहले चरण में बाजीराव पेशवा का दौर था. उन्होंने दिल्ली की सल्तनत को अपनी ताक़त का एहसास करवाया था.""इसके बाद दूसरे चरण में सदाशिवराव भाऊ पेशवा का दौरा था. 1760 के पानीपत युद्ध में मराठाओं ने अपनी आक्रामकता दिखाई थी. दिल्ली, आगरा और अलीगढ़ में मराठाओं का दबदबा 1818 में समाप्त हो गया जब गोरों ने मराठाओं को हरा दिया था."डॉ. अनिरूद्ध देशपांडे ने बताया, "मराठा शासकों ने दिल्ली की सल्तनत पर काबिज होने या मुग़लों को उखाड़ने के बारे में शायद कभी नहीं सोचा, कभी कोशिश भी नहीं की. मराठा हमेशा उनके संरक्षक बने रहे. लोगों की नज़रों में मुग़ल शासक थे, और मराठा उनके नाम पर अपना काम कराते रहे."
Source Link - Do you know that saffron flag also waved on the Red Fort?

No comments:

IMPORTANT-------ATTENTION -- PLEASE

क्या डबवाली में BJP की इस गलती को नजर अंदाज किया जा सकता है,आखिर प्रशासन ने क्यों नहीं की कार्रवाई