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लोक संघर्ष, विकास व स्पष्टवादिता के प्रतीक स्वतंत्रता सेनानी स्व. गुरदेव सिंह शांत

 Dabwalinews.com
हरियाणा के अंतिम छोर पर बसे डबवाली शहर के विकास को 47 पहले नये आयाम देने वाले स्वतंत्रता सेनानी स्व. श्री गुरदेव सिंह जी शांत ने अपना संपूर्ण जीवन स्पष्टवादिता, सच्चाई व अडिगता से देश, समाज व लोक-हित में निष्काम समर्पित किया।
आज आधी सदी के बाद भी श्री गुरदेव सिंह शान्त द्वारा करवाये डबवाली शहर के विकास की नितिगत चमक का कोई सानी नहीं। बड़े बड़े राजनेता, मुख्यमंत्री, मन्त्री, विधायक व आई.ऐ.एस/आई.पी.एस. प्रशासनिक वर्ग उनके विकासशील विजन, वाकपुटता, भाषणकला व प्रभावशाली शख्सियत के कारण उनके कायल थे। उनके द्वारा कहे गये अल्फाज़ सरकारे-दरबारे महत्वपूर्ण रुतबा रखते थे। कांग्रेस पार्टी के कर्मठ सिपाही होने के बावजूद पार्टीबाजी से उप्पर उठ कर समाजहित को तरजीह देने वाले शान्त साहिब आम जनता के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थे। उनका जन्म सन् 1932 में क्षेत्र के सुप्रसिन्द्ध स्वर्णकार स. कृपा सिंह (मिड्डूखेड़ा) के सुपुत्र स. करतार सिंह के घर हुआ। उन्होंने प्रांरभिक शिक्षा स्थानीय हाई स्कूल से और उच्चतम शिक्षा आर.एस.डी. कालेज फिरोजपुर व डी. एम कालेज मोगा से ग्रहण की। देश भक्ति की भावना उनके विद्यार्थी जीवन में ही दिखाई देने लगी थी। जब वह आंठवीं कक्षा में थे तब अम्बाला मंडल के कमिश्नर मिस्टर मैक्यूम डबवाली के सरकारी स्कूल के निरक्षंन हेतू आऐ। स्कूल प्रबन्धक कमेटी द्वारा शांत जी को स्वागत समिति का मुख्य वक्ता नियुक्त किया गया। उनके साथ राम परकाश सेठी, ओमपरकाश छाबड़ा, बिहारी लाल व नन्द किशोर व अन्य आदि साथी भी मौजूद थे। परन्तु गुरदेव सिंह ने मुख्य अतिथि का स्वागत करने की बजाए गो बैक के नारे लगाने शुरु कर दिए। जिसके एवज में अंग्रेज सरकार द्वारा उन लोगों सिरसा व हिसार जेल में कई महीने तक रखा गया।उसके बाद उन्होंने चौ. देवी लाल व श्री पतराम जी वर्मा के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। स्वतंत्रता से पूर्व जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुला द्वारा शुरू किए गए कश्मीर कुविट मूवमैंट में श्री शांत जी के नेतृत्व में पंजाब विद्यार्थी कांग्रेस के सैंकड़ों कार्यकर्तायों ने भाग लिया। उन्होने ड़बवाली क्षेत्र को शिक्षा जगत में नई दिशा व दशा प्रदान करने के उद्देश्य से 1960 के दशक में नैशनल हाई स्कूल की स्थापना की थी। जिसका अपने समय में शिक्षा जगत में अपना विशेष रुतबा था। विभाजन के पश्चात् पूर्व राज्यसभा सदस्य श्री वीरेन्द्र कटारिया व शांत जी ने ईस्ट पंजाब स्टुडैंट कांग्रेस की बुनियाद डाली। महा पंजाब के स्व. मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैंरों से भी उनके घनिष्ठ संबंध थे। श्री कैरों उनको सगे बेटे सा सम्मान देते थे। सन् 1962 से 1965 तक वह जिला कांग्रेस कमेटी हिसार के कार्यकारी अध्यक्ष व फिर अध्यक्ष के रुप में विराजमान रहे। पंजाब व हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों चौ. देवी लाल, चौ. बंसी लाल, चौ. भजन लाल व श्री बनारसी दास गुप्ता से घनिष्ठ मित्रता होने के बावजूद भी उन्होंने अपने निज स्वार्थो को तिलांजली देते हुए उम्र भर लोक हितों को प्रमुखता दी।
गोल्ड कंट्रोल एक्ट के विरोध में अखिल भारतीय स्वर्णकार संघ के तत्कालीन अध्यक्ष श्री भवानी शंकर आसाराम सोनी, उपाध्यक्ष श्री शाम लालजी वर्मा व राष्ट्रीय महामंत्री श्री अनिल वासु व श्री गुरदेव सिंह शांत ने देश भर के स्वर्णकारों को प्रेरित करते हुए देशव्यापी आंदोलन छेडक़र केंद्र सरकार को अपना फैसला लेने पर मकाबूर कर दिया था। उन्होंने सन् 1972 से 1975 तक नगर सुधार मंडल के संस्थापक चेयरमैन के पद पर रहते हुए ढ़ेरों अड़चनों के बावजूद डबवाली शहर में विकास के नये आयाम खड़े किए। उन्होनें करीब चार दशक पूर्व बतौर नगर सुधार मंडल के अध्यक्ष शहर के बीचों-बीच स्थित जोहड के स्थान पर चंडीगढ़ स्टाईल मार्किट बनवा कर शहर को नया स्वरूप दिया। बाद में उनकी समर्पित भावना के मद्देनजर उसी मार्किट में दुकानों के एक समूह का नाम शांत ब्लाक रखा गया। उन्होंने अपने इस कार्यकाल के दौरान सरकार को लाखों रूपये का शुद्ध मुनाफा भी कमाकर दिया। वे तकरीबन एक दशक तक जिला शिकायत निवारण कमेटी, सिरसा के अग्रणीय सदस्य के रूप में भी कार्य करते रहे। सन् 1984 में उन्होंने एक सप्ताहिक समाचार पत्र टाईम्स आफ डबवाली भी शुरू किया था, जो कि अपने समय का अत्यन्त लोकप्रिय समाचार पत्र रहा। परन्तु यह समाचार पत्र आर्थिक कारणों से बंद हो गया। इसके इलावा वी.पी. सिंह सरकार के दौरान मंडल कमीशन आरक्षण के दंगों के वक्त डबवाली शहर में शान्ति बनाए रखने के लिए भूख हड़ताल का आगाज करके देश भर में भडकी आग से डबवाली को बचा कर अति प्रशंसनीय कार्य किया था। स्व: श्री गुरदेव सिंह शांत को उनके ईमानदारी, स्पष्टवादिता व लोकपक्षीय सोच के कारण प्रदेश केप्रशासनिक, राजनीतिक क्षेत्र व समाज के प्रत्येक वर्ग व जाति में विशेष सम्मान था। वह कथनी व करणी के धनी थे। उनकी निष्पक्ष व निधडक़ कार्यप्रणाली का जमाना आज भी कायल है। 23 दिसंबर 1995 को डबवाली में घटित हुए भीषणतम अगिनकांड में वो लोगों से आग में झुलस रहें बच्चों को बचाने की अपील करते हुए वहीं खड़े रहे। जबकि उनके साथ प्रथम पंक्ति पर बैठे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी आग लगते ही फौरन छोटे गेट से बाहर निकल गए। परन्तु वह आम जनता के प्रति अपनी जिम्मेवारी निभाते हुए बच्चों को बचाने को आह्वान करते बुरी तरह से घायल हो गए व शांत जी को आग से निकालते समय उनका सुपुत्र इकबाल सिंह शांत भी गंभीर रूप से झुलस गया। शांत जी को पी.जी.आई. चंडीगढ़ में ले जाया गया यहां इलाज के दौरान 25 दिसंबर 1995 को रात 10 बजे उनका स्वर्गवास हो गया था। अब उनके सुपुत्र इकबाल सिंह शांत भी उनके (शांत जी) की सोच व स्वभाव के अनुरूप स्पष्टवादिता, अडिगता से बतौर प्रमुख पत्रकार समाज सेवा में अपना योगदान डाल रहें हैं। अब शेरगढ़ (संगरिया रोड) से बठिंडा रोड को बाईपास, डबवाली में बठिंडा चौक का दायरा छोटा करने/लाल बत्ती लगाने, बस स्टैंड रोड की सडक चौड़ी करने व बस स्टैंड रोड पर बनी पार्किंग जैसे ज्वंलत मुद्दे भी स्वर्गीय शान्त जी द्वारा सार्वजनिक मसलों पर पकड़ की शिक्षा भी उनके सुपुत्र इक़बाल सिंह शांत द्वारा प्रशासन के समक्ष समय-समय पर उठाई मांगों का परिणाम हैं। आज उनकी पुण्यतिथि पर शान्त साहिब के महान व्यक्तित्व को श्रद्धा सुमन करते हैं।

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क्या डबवाली में BJP की इस गलती को नजर अंदाज किया जा सकता है,आखिर प्रशासन ने क्यों नहीं की कार्रवाई