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एम्बुलेंस संचालकों पर लगाया अंकुश, मेडिकल स्टोर की लूट पर नकेल की जरूरत,प्रिंट रेट पर बेच रहे दवाईयां, मरीजों को नहीं दिया जाता दवा का बिल

Dabwalinews.com
कोरोनाकाल में हेल्थ सेक्टर में ही सर्वाधिक लूट का खेल जारी है। कोशिश की जा रही है कि हरेक अपने-अपने हिस्से की लूटखसोट करें।मरीजों की चित्कार के बाद प्रशासन ने काफी अंकुश लगाने का काम किया है, लेकिन अभी भी राहत दिलवाए जाने की जरूरत है। एम्बुलेंस संचालकों की लूट पर तो अंकुश लगाने का कार्य किया जा चुका है। महामारी के दौर में एम्बुलेंस चालकों ने भी जमकर चांदी कूटने का काम किया। जिसके कारण कोरोना मरीज और उनके तिमारदार चित्कार उठें। किराए के रूप में मुंहमांगे रेट वसूलने वाले एम्बुलेंस चालकों का सरकार द्वारा रेट निर्धारित कर दिया गया है, जिसके तहत आधुनिक जीवनरक्षक उपकरणों से सुसज्जित एम्बुलेंस का किराया 15 रुपये प्रति किलोमीटर तय किया गया है। जबकि आवश्यक जीवनरक्षक उपकरणों वाली एम्बुलेंस का किराया 7 रुपये प्रति किलोमीटर निर्धारित किया गया है। जिला परिवहन अधिकारी की ओर से इस आशय के आदेश जारी किए गए है। जिससे एम्बुलेंस संचालकों की लूट से मरीजों को राहत मिलेगी।उधर, मेडिकल स्टोरों पर लूट बदस्तूर जारी है। प्राइवेट अस्पतालों में स्थित इन मेडिकल स्टोरों पर मरीजों को प्रिंट रेट पर ही दवा बेची जा रही है। जबकि बाजार में स्थित मेडिकल स्टोर पर दवा 15 से 20 प्रतिशत डिस्काऊंट पर दी जाती है। इन मेडिकल स्टोर पर मरीजों को दवा का बिल भी नहीं दिया जाता। मौखिक रूप से मरीज को दवा की कीमत बता दी जाती है, जिसके कारण उनके साथ खुली लूट हो रही है। दवा का बिल न दिए जाने के कारण दवा के एक्सपायरी होने अथवा सैंपल की दवा होने की भी संभावना बनी रहती है।दरअसल, दवा नियंत्रक विभाग की कथित मिलीभगत से प्राइवेट अस्पतालों के मेडिकल स्टोर पर दवा के नाम पर लूट का खेल लंबे अरसे से खेला जा रहा है। इन मेडिकल स्टोर पर मरीजों को प्रिंट रेट पर ही दवा खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। अचरज की बात यह है कि इन मेडिकल स्टोर पर मरीजों को बिल भी नहीं दिया जाता। इसके बावजूद वे अपना स्टॉक कैसे मैनेज करते है? प्राइवेट अस्पतालों में स्थित मेडिकल स्टोर का कई दवाओं पर एकाधिकार रहता है। चिकित्सक द्वारा लिखी गई दवा केवल अस्पताल के ही मेडिकल स्टोर पर उपलब्ध होती है, दूसरे किसी मेडिकल स्टोर पर वह दवा नहीं मिलती। ऐसे में मरीज को विवश होकर उसी मेडिकल स्टोर से दवा खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। कोरोनाकाल में अनेक मेडिकल स्टोर संचालकों ने जमकर लूट मचा रखी है। मुंह से जो रकम मांगी, वहीं दवा की कीमत हो जाती है। ऐसे में प्रशासन को प्राइवेट अस्पतालों के मेडिकल स्टोरों पर भी नियंत्रण किए जाने की जरूरत है।



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क्या डबवाली में BJP की इस गलती को नजर अंदाज किया जा सकता है,आखिर प्रशासन ने क्यों नहीं की कार्रवाई